गुप्त पति

गुप्त पति

प्रेषक : मिहिर मोहन

जैसा कि आपको पता है कि मैं अपने घर पर छोटे बच्चों को कोचिंग देता हूँ तो उनमें कुछ बड़े बच्चे भी आते हैं और कुछ छोटे बच्चे भी !

इससे पहले मैंने आपको एक लड़की की कहानी बताई थी जो मेरे पास आती थी पढ़ने के लिए, आज मैं एक आंटी की कहानी बताने जा रहा हूँ।

मेरे पास एक छोटी बच्ची आती थी वो तीसरी कक्षा में पढ़ती थी, उसकी माँ उसके बारे में पूछने के लिए हफ्ते में तीन चार बार आ ही जाती थी। वो हर बार साड़ी पहन कर आती थी और जब भी आती मेरे ऊपर क्या कर जाती कि पूरा दिन फिर मुझे वही याद आती थी। एक दिन की बात है, वो मेरे घर आई अपने बच्चे को लेकर और बैग रखते समय झुकी, और जैसे ही वो झुकी, उसका पल्लू सरक गया और उसके चुच्चों के दर्शन हो गए मुझे। मेरा तो एकदम से तन गया और पूरी रात मैं वही याद करते रह गया और सुबह उठ कर तो मुझे उनके नाम का हिलाना पड़ा। वो क्या चुच्चे दिखा गई थी, मुझे मज़ा आ गया था उस वक्त।

उस दिन के बाद मैं एक दिन अपनी बाइक लेकर कहीं जा रहा था और तभी मुझे सामने से वही आंटी जाती दिखी, मैं उनके बाजू से गया और उनके सामने बाइक रोक के लिफ्ट के लिए बोला तो वो मान गई और मेरे पीछे बैठ गई।

आंटी मुझे चलने से पहले ही बोली- जरा सम्भाल के चलाना, मुझे बाइक पर डर लगता है।

मैंने कहा- आंटी, टेंशन मत लो, बस मुझे पकड़ के बैठ जाओ।

आंटी फिर मुझे पकड़ कर बैठ गई, पहले तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा था और फिर कुछ देर के बाद मेरे जांघ पर हाथ रख दिया। उनके घर के सामने मैंने बाइक रोकी, वो उतर गई और मुझे धन्यवाद कह कर अपने घर को जाने लगी।

मैंने उस समय ध्यान दिया कि उस समय उनकी कमर ज्यादा ही मटक रही थी, या फिर आप एक तरह से कह सकते हैं कि मुझे दिखा कर मटका रही थी।

आंटी कुछ दूर जाने के बाद फिर से पलट कर आई और पूछने लगी- मेरी बेटी कैसी चल रही है पढ़ाई में !

मैंने कहा- वैसे तो सभी विषयों में ठीक है पर मैथ्स उसका बहुत कमजोर है, उसमें उसे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।

वो बोली- एक काम कीजिये, आप उसे कुछ अलग से समय दे दीजिये।

मैंने कहा- देखिये, मैं अपने घर पर ज्यादा देर नहीं पढ़ा सकता क्योंकि मेरे घर पर कोई न कोई आता रहता है, इसीलिए मुझे जितना खाली समय मिलता है, मैं उसी में पढ़ा देता हूँ।

वो बोली- आप मेरे घर पर आकर पढ़ा दिया करो।

मैंने कहा- ठीक है, कल सुबह आ जाऊँगा।

दूसरे दिन मैं उनके घर गया तो देखा कि बच्ची सो रही थी।

उन्होंने मुझे कहा- आप बैठिये, मैं छोटी को जगा कर लाती हूँ।

कुछ देर के बाद वो मेरे लिए चाय बना कर लाई और मुझे देने लगी। चाय देते समय चाय मेरे ऊपर गिर गई, पता नहीं जानबूझ कर गिराई या गिर गई, पर गिर गई मेरे ऊपर। वो तो किस्मत अच्छी थी कि चाय ज्यादा गर्म नहीं थी वरना गांड फ़ट जाती मेरी।

आंटी सॉरी सॉरी बोलते हुए मुझे बोली- अपना टी शर्ट दे दीजिये, मैं धो देती हूँ।

मैंने अपनी टीशर्ट उतार कर उन्हें दी, वो उसे लेकर बाथरूम चली गई और वापस आकर बोली- आपकी पैंट पे भी तो गिरी है, वो भी दीजिए, मैं अभी साफ़ करके लाती हूँ।

मैंने पहले तो मना किया- नहीं, पैंट ठीक है।

पर वो बार बार बोलने लगी और फिर अंत में बोली- इसमें शर्माना क्या, मैं तो तुम्हारी आंटी हूँ न, इतना क्या शरमाते हो।

मैंने कहा- आंटी, अब शर्म नहीं आएगी तो क्या आएगी, आप चीज़ ही ऐसी मांग रही हो।

आंटी फिर से बोली- दे दो और यह तौलिया लपेट लो !

मैंने उनसे तौलिया लिया और उन्हें पैंट उतार कर दे दी।

आंटी मेरी पैंट लेकर चल दी और दो मिनट के बाद फिर से आई और बोली- कहीं जला तो नहीं?

और यह कहते कहते वो मेरे लंड की तरफ देखने लग गई और फिर उस पर हाथ रखने लग गई।

मैं एकदम उठ गया और बोला- अरे आंटी, यह आप क्या कर रही हो?

आंटी बोली- वही जो मैं अपने पति के साथ ठीक से नहीं कर पाती !

और फिर उन्होंने मुझे कस के गले लगा लिया।

मेरा तो पहले से तन चुका था और मौका भी अच्छा था, मैं उन्हें किस करने लगा और वो भी मुझे चूमने लगी। दो मिनट की चुम्मा-चाटी के बाद उन्होंने हल्का सा हाथ मारा मेरे तौलिए पर और वो गिर गया तो मैं सिर्फ़ चड्डी में आ गया।

उसके बाद मैंने उन्हें कस के गले लगा लिया और वो एक हाथ मेरे लंड पे रख कर उसे मसलने लगी। मैं भी उनके चुचों को मसलने लग गया तो वो बोली- यहाँ नहीं बेडरूम में चलो।

मैं फिर उनके साथ बेडरूम में गया, वहाँ उन्होंने मुझे कस के गले लगा लिया और मुझे चूमने लगी, मैं भी उनके होंठों को चूसने लगा और एक हाथ से उनके चुचों को मसलने लगा।

कुछ देर के बाद मैंने उन्हें बिस्तर पर लेटा दिया और उनके कपड़े उतार कर उन्हें केवल पेंटी और ब्रा में छोड़ दिया। उनके ऊपर मैं फिर लेट गया और उन्हें फिर से चूमने लग गया। थोड़ी देर के बाद मैं उनके चुचों को ब्रा के ऊपर से ही चूमने और काटने लग गया। फिर मैंने उनकी ब्रा उतार दी और उनके गुलाबी और बहुत ही प्यारे प्यारे निप्पल को अपने मुँह में भर कर चाटने और चूसने लग गया।

वो अब सिसकारियाँ लेने लगी- उम्म्म म्म ओह्ह ह्ह्ह अह्ह !

मैं उनकी चूचियों को दोनों तरफ से कस कस कर दबाने लग गया और बीच-बीच में चूसने भी लगा। उनके चुच्चे इतने बड़े थे कि दोनों तरफ से दबाने से में उनके दोनों निप्पल को एक साथ चूस सकता था, मुझे तो बहुत मज़ा आ रहा था। मैं उपर उनके चुचो को चूस रहा था और वो नीचे से मेरे लंड दबाए-सहलाए जा रही थी।

फिर मैं कुछ देर के बाद उठा, उनकी पेंटी निकाल दी और उनकी चिकनी चूत देख कर मेरे मुँह में पानी आ गया।

मैंने उनसे पूछा- कब साफ़ की?

तो वो बोली- जिस दिन तुम मुझे बाइक पर बिठा कर ले गये थे, उसी दिन तुम्हारे नाम लेकर साफ़ की थी।

मैंने फिर खुशी से उनकी चूत पर मुँह रख दिया और और कस कस के उनकी चूत की पंखुड़ियों को चूसने लगा और अपने होंठों से उनको काट भी देता।

मैंने अपने दोनों हाथों से उनकी पंखुड़ियों को अलग किया और उनकी चूत के बीच में अपनी जीभ घुमाने लगा।

वो अब बुरी तरह पागल सी होने लगी थी और मेरे सर को अपने चूत में घुसेड़ने की कोशिश कर रही थी। वो अब जोर जोर से सिसकारियाँ लेने लगी और मेरे सर पर हाथ फेरे जा रही थी।

मैं फिर उनकी चूत के छेद में अपनी जीभ डालने लगा तो वो और भी पागल सी हो उठी और उईई ह्म्म अह्ह्ह्ह करने लग गई।

मैंने उनकी दोनों टांगों को उठा दिया और फिर कस कस के चाटने लग गया उनकी चूत को।मैं बीच बीच में उनकी चूत को अपने होंठों से काट भी देता और वो एकदम से सिमट जाती और कराहने लग जाती।

वो मुझे बोली- और देर मत करो, जल्दी से अपना यह लंड उतार दो मेरी चूत में, मेरे पति की तरह मुझे प्यासा मत छोड़ना, जल्दी करो, मैं बहुत प्यासी हूँ ! हम्म अम्म्म्म्मुफ्फ़ ई और करो और करो और और और करो।

मैं उठा और उनकी चूत में लंड सेट किया और धक्का दे दिया, वो एकदम से चीख उठी और बोली- धीरे करो, मैंने इतना मोटा लंड नहीं लिया कभी ! धीरे धीरे करो।

मैं धीरे धीरे पेलने लगा, कुछ देर बाद जब उन्हें मज़ा आने लगा तो मैंने अपनी गति बढ़ा दी और अब मैं उन्हें कस कस के पेलने लग गया।

मैंने उनकी टाँगें उठा दी और अपने कंधों पर रख के झटके देने लगा और वो उईईइ उ उ ऊ उ हम आह किया जा रही थी और मेरे झटकों के मज़े ले रही थी।

मैं उनके चुचों को पकड़ कर मसल रहा था और नीचे से धक्के देता रहा और वो जोर जोर से चीखते हुए मज़े ले रही थी।

वो अब एक बार झड़ गई पर मैंने अपना धक्के चालू रखे और उन्हें पेलता रहा। कुछ देर बाद उन्होंने अपनी टांगों से मेरे कमर को जकड़ लिया और मुझे अपनी तरफ कसने लग गई।

मैंने अपनी गति और बढ़ा दी और फिर उनकी टांगों को अपनी कमर से हटा कर पीछे की तरफ कर दिया। तब उन्होंने अपने हाथों से मुझे कस कर पकड़ लिया और अपने नाखूनों को मेरे बदन में गाड़ने लग गई।

मुझे दर्द तो हो रहा था पर मैं उन्हें अब भी झटके दिए जा रहा था, अब मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है तो मैंने उन्हें कहा- मेरा निकलने वाला है, कहाँ निकालूँ मैं?

वो बोली- अंदर ही निकाल दो !

और फिर यह भी बोली- मैं भी झड़ने वाली हूँ।

अब मैंने अपनी गति और तेज कर दी और कुछ तीन चार झटकों के बाद मैं उनकी चूत में ही झड़ गया और वो भी एकदम से फिर से झड़ गई।

हम दोनों के मिनट तक वैसे ही रहे और मैं अपना पानी उनकी चूत में छोड़ने लगा और वो भी अपना पानी छोड़ने लगी। पूरा पानी निकलने के बाद मुझे काफी खुशी महसूस हुई और वही सुख उनके चेहरे पे भी देखने को मिल रहा था।

पानी निकलने के बाद मैं उनके ऊपर लेट गया और हम दोनों एक दूसरे को चूमते रहे और फिर उन्होंने मुझसे पूछा- तुम क्या मेरे गुप्त पति बनोगे और मुझे इसी तरह खुश रखोगे क्या?

मैंने बोला- इसमें कौन सी बड़ी बात है, मैं अब से आपका पति हूँ और आप मेरी पत्नी।

अब इसके बाद तो हम दोनों के बीच में इसी तरह का खेल हफ्ते में दो तीन बार हो ही जाता है। इस बात को अब चार महीने हो गए और अब तक चलता आ रहा है।

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प्रकाशित : 17 मई 2013